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"सुनो / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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यहाँ से पथ मुड़ जायेगा ।
 
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:इधर घूमेगा, फिर उस ओर  
 
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:खोजने को पृथ्वी का छोर
 
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:बड़ी ही मंज़िल नापेगा।
 
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और कहते हैं-
 
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आखिर में यहीं वापस उड़ आएगा  …
 
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उन्हें कहने दो-
 
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जो वे कहें।
 
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चलो, चलते ही हम-तुम रहें।
 
चलो, चलते ही हम-तुम रहें।
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19:50, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

यहाँ से पथ मुड़ जायेगा ।
इधर घूमेगा, फिर उस ओर
खोजने को पृथ्वी का छोर
बड़ी ही मंज़िल नापेगा।
और कहते हैं-
आखिर में यहीं वापस उड़ आएगा …
उन्हें कहने दो-
जो वे कहें।
चलो, चलते ही हम-तुम रहें।