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"बाहर-भीतर / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
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19:57, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
बाहर कितना शोर मचा है,
भीतर आती एक न आहट,
इसी मुक्ति के लिए
तुम्हारे मन में थी इतनी अकुलाहट ।
अरे बन्धु । यह तो कारा है,
दृढ प्राचीरें, द्वार अचल है ,
और वहाँ जनघोष, क्रान्तियाँ --
और यहाँ…सबकुछ निश्चल है ।