भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दो निजी कविताएँ / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | '''1 | + | :::'''1 |
ये जो चेहरे पर खिंची लकीरें हैं… | ये जो चेहरे पर खिंची लकीरें हैं… | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 25: | ||
बल हैं । | बल हैं । | ||
− | '''2 | + | :::'''2 |
पहले ही जैसी शान्त-सहज | पहले ही जैसी शान्त-सहज |
20:53, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
1
ये जो चेहरे पर खिंची लकीरें हैं…
ये हँसने से, गाने से,
गाते रहने से
अंकित होनेवाली तस्वीरें हैं ।
ये जो अपनी वय से ज़्यादा
दिखनेवाले, माथे पर के
टेढे-मेढे बल हैं—
ये, वे सारे पल हैं,
जो हमने बाँट दिए,
या आँखों-आँखों में ही
रखकर काट दिए ।
सबकी निगाह में ‘बोझ’—
वही तो मेरे संबल हैं ।
जो माथे पर टेढे-मेढे, आड़े-तिरछे
बल हैं ।
2
पहले ही जैसी शान्त-सहज
जिज्ञासा आँखों में ।
‘जो व्यक्त नहीं की गई’—
खुशी कुछ ऐसी होंठों पर ।
सब कुछ तो बदल गया
पर
मुख का भाव नहीं बदला ।
संघर्ष, घुटन,
हारी बाज़ी, लाचारी ।
पर
जीवन जीने का चाव नहीं बदला ।
सब कुछ तो बदल गया
पर मुख का भाव…।