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: वही, वैसे ही अपने को पा ले, नहीं तो | : वही, वैसे ही अपने को पा ले, नहीं तो |
23:49, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
वही, वैसे ही अपने को पा ले, नहीं तो
और मैंने कब, कहाँ तुम्हें पाया है?
हाँ-- बातों के बीच की चुप्पियों में
हँसी में उलझ कर अनसुनी हो गई आहों में
तीर्थों की पगडंडियों में
बरसों पहले गुज़रे हुए यात्रियों की
दाल-बाटी की बची-बुझी राखों में !