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− | राजाजी का बाग है, | + | बाँगर में |
− | चारों ओर दीवार है | + | राजाजी का बाग है, |
− | जिस में एक ओर द्वार है, | + | चारों ओर दीवार है |
− | बीच-बाग़ कुआँ है | + | जिस में एक ओर द्वार है, |
− | :::बहुत-बहुत गहरा। | + | बीच-बाग़ कुआँ है |
− | और उस का जल | + | :::बहुत-बहुत गहरा। |
− | मीठा, निर्मल, शीतल। | + | और उस का जल |
− | कुएँ तो राजाजी के और भी हैं | + | मीठा, निर्मल, शीतल। |
− | -एक चौगान में, एक बाज़ार में- | + | कुएँ तो राजाजी के और भी हैं |
− | :::पर इस पर रहता है पहरा। | + | -एक चौगान में, एक बाज़ार में- |
− | खादर में | + | :::पर इस पर रहता है पहरा। |
− | राजाजी के पुरवे हैं, | + | खादर में |
− | मिट्टी के घरवे हैं, | + | राजाजी के पुरवे हैं, |
− | आगे खुली रेती के पार | + | मिट्टी के घरवे हैं, |
− | :::सदानीरा नदी है। | + | आगे खुली रेती के पार |
− | गाँव के गँवार | + | :::सदानीरा नदी है। |
− | उसी में नहाते हैं, | + | गाँव के गँवार |
− | कपड़े फींचते हैं, | + | उसी में नहाते हैं, |
− | आचमन करते हैं, | + | कपड़े फींचते हैं, |
− | डाँगर भँसाते हैं, | + | आचमन करते हैं, |
− | उसी से पानी उलीच | + | डाँगर भँसाते हैं, |
− | पहलेज सींचते हैं, | + | उसी से पानी उलीच |
− | और जो मर जायें उन की मिट्टी भी | + | पहलेज सींचते हैं, |
− | :::वहीं होनी बदी है। | + | और जो मर जायें उन की मिट्टी भी |
− | कुएँ का पानी | + | :::वहीं होनी बदी है। |
− | राजाजी मँगाते हैं, | + | कुएँ का पानी |
− | :::शौक़ से पीते हैं। | + | राजाजी मँगाते हैं, |
− | नदी पर लोग सब जाते हैं, | + | :::शौक़ से पीते हैं। |
− | उस के किनारे मरते हैं | + | नदी पर लोग सब जाते हैं, |
− | :::उसके सहारे जीते हैं। | + | उस के किनारे मरते हैं |
− | बाँगर का कुआँ | + | :::उसके सहारे जीते हैं। |
− | राजाजी का अपना है | + | बाँगर का कुआँ |
− | लोक-जन के लिए एक | + | राजाजी का अपना है |
− | कहानी है, सपना है | + | लोक-जन के लिए एक |
− | खादर की नदी नहीं | + | कहानी है, सपना है |
− | किसी की बपौती की, | + | खादर की नदी नहीं |
− | पुरवे के हर घरवे को | + | किसी की बपौती की, |
+ | पुरवे के हर घरवे को | ||
गंगा है अपनी कठौती की। | गंगा है अपनी कठौती की। | ||
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00:23, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण
बाँगर में
राजाजी का बाग है,
चारों ओर दीवार है
जिस में एक ओर द्वार है,
बीच-बाग़ कुआँ है
बहुत-बहुत गहरा।
और उस का जल
मीठा, निर्मल, शीतल।
कुएँ तो राजाजी के और भी हैं
-एक चौगान में, एक बाज़ार में-
पर इस पर रहता है पहरा।
खादर में
राजाजी के पुरवे हैं,
मिट्टी के घरवे हैं,
आगे खुली रेती के पार
सदानीरा नदी है।
गाँव के गँवार
उसी में नहाते हैं,
कपड़े फींचते हैं,
आचमन करते हैं,
डाँगर भँसाते हैं,
उसी से पानी उलीच
पहलेज सींचते हैं,
और जो मर जायें उन की मिट्टी भी
वहीं होनी बदी है।
कुएँ का पानी
राजाजी मँगाते हैं,
शौक़ से पीते हैं।
नदी पर लोग सब जाते हैं,
उस के किनारे मरते हैं
उसके सहारे जीते हैं।
बाँगर का कुआँ
राजाजी का अपना है
लोक-जन के लिए एक
कहानी है, सपना है
खादर की नदी नहीं
किसी की बपौती की,
पुरवे के हर घरवे को
गंगा है अपनी कठौती की।