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"उलाहना / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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पर क्या भुलाने को? | पर क्या भुलाने को? | ||
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मैंने अपने दर्द को सहलाया | मैंने अपने दर्द को सहलाया | ||
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पर क्या उसे सुलाने को? | पर क्या उसे सुलाने को? | ||
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मेरा हर मर्माहत उलाहना | मेरा हर मर्माहत उलाहना | ||
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साक्षी हुआ कि मैंने अंत तक तुम्हें पुकारा! | साक्षी हुआ कि मैंने अंत तक तुम्हें पुकारा! | ||
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ओ मेरे प्यार! मैंने तुम्हें बार-बार, बार-बार असीसा | ओ मेरे प्यार! मैंने तुम्हें बार-बार, बार-बार असीसा | ||
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तो यों नहीं कि मैंने बिछोह को कभी भी स्वीकारा। | तो यों नहीं कि मैंने बिछोह को कभी भी स्वीकारा। | ||
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23:09, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
नहीं, नहीं, नहीं!
मैंने तुम्हें आँखों की ओट किया
पर क्या भुलाने को?
मैंने अपने दर्द को सहलाया
पर क्या उसे सुलाने को?
मेरा हर मर्माहत उलाहना
साक्षी हुआ कि मैंने अंत तक तुम्हें पुकारा!
ओ मेरे प्यार! मैंने तुम्हें बार-बार, बार-बार असीसा
तो यों नहीं कि मैंने बिछोह को कभी भी स्वीकारा।
नहीं, नहीं नहीं!