भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जय गंगे माता / आरती" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKBhaktiKavya |रचनाकार= }}<poem> जय गंगे माता श्री जय गंगे माता।<BR>जो नर तुम...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
{{KKBhaktiKavya
+
{{KKAarti
 
|रचनाकार=
 
|रचनाकार=
 
}}<poem>
 
}}<poem>
 
जय गंगे माता श्री जय गंगे माता।<BR>जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥<BR>जय गंगे माता॥1॥<BR>चन्द्र सी जो तुम्हारी जल निर्मल आता।<BR>शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥<BR>जय गंगे माता॥2॥<BR>पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता।<BR>कृपा दृष्टि तुम्हारी त्रिभुवन सुख दाता॥<BR>जय गंगे माता॥3॥<BR>एक ही बार जो तेरी शरणागति आता।<BR>यम की त्रास मिटाकर परमगति पाता॥<BR>जग गंगे माता॥4॥<BR>आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता।<BR>अर्जुन वहीं सहज में मुक्ति को पाता॥<BR>जय गंगे माता॥5॥
 
जय गंगे माता श्री जय गंगे माता।<BR>जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥<BR>जय गंगे माता॥1॥<BR>चन्द्र सी जो तुम्हारी जल निर्मल आता।<BR>शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥<BR>जय गंगे माता॥2॥<BR>पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता।<BR>कृपा दृष्टि तुम्हारी त्रिभुवन सुख दाता॥<BR>जय गंगे माता॥3॥<BR>एक ही बार जो तेरी शरणागति आता।<BR>यम की त्रास मिटाकर परमगति पाता॥<BR>जग गंगे माता॥4॥<BR>आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता।<BR>अर्जुन वहीं सहज में मुक्ति को पाता॥<BR>जय गंगे माता॥5॥

20:25, 3 नवम्बर 2009 का अवतरण

   आरती का मुखपृष्ठ

जय गंगे माता श्री जय गंगे माता।
जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥
जय गंगे माता॥1॥
चन्द्र सी जो तुम्हारी जल निर्मल आता।
शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥
जय गंगे माता॥2॥
पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता।
कृपा दृष्टि तुम्हारी त्रिभुवन सुख दाता॥
जय गंगे माता॥3॥
एक ही बार जो तेरी शरणागति आता।
यम की त्रास मिटाकर परमगति पाता॥
जग गंगे माता॥4॥
आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता।
अर्जुन वहीं सहज में मुक्ति को पाता॥
जय गंगे माता॥5॥