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"जय-जय तुलसी माता / आरती" के अवतरणों में अंतर

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   आरती का मुखपृष्ठ

जय-जय तुलसी माता।
सब जग की सुख दाता, वर दाता॥ जय-जय ..

सब योगों के ऊपर, सब रोगों के ऊपर।
रुज से रक्षा करके भव द्दाता॥ जय-जय ..

बहु पुत्री हे श्यामा, सुर बल्ली हे ग्राम्या।
विष्णु प्रिये जो तुमको सेवे, सो नर तर जाता॥ जय-जय ..

हरि के शीश विराजत त्रिभुवन से हो वंदित।
पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता॥ जय-जय ..

लेकर जन्म विजन में आई दिव्य भवन में।
मानवलोक तुम्हीं से सुख सम्पत्ति पाता॥ जय-जय ..

हरि को तुम अति प्यारी श्यामवरण सुकुमारी।
प्रेम अजब है उनका तुमसे कैसा नाता॥ जय-जय ..