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   आरती का मुखपृष्ठ

हर हर हर महादेव !

सत्य, सनातन, सुंदर, शिव ! सबके स्वामी ।
अविकारी, अविनाशी, अज, अंतर्यामी ॥१॥ हर हर०

आदि अनंत, अनामय, अकल, कलाधारी ।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल अघहारी ॥२॥ हर हर०

ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी ।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी ॥३॥ हर हर०

रक्षक, भक्षक, प्रेरक, तुम औढरदानी ।
साक्षी, परम अकर्ता कर्ता अभिमानी ॥४॥ हर हर०

मणिमय भवन निवासी, अति भोगी, रागी ।
सदा मसानबिहारी, योगी वैरागी ॥५॥ हर हर०

छाल, कपाल, गरल, गल, मुंडमाल व्याली ।
चिताभस्म तन, त्रिनयन, अयन महाकाली ॥६॥ हर हर०

प्रेत-पिशाच, सुसेवित पीत जटाधारी ।
विवसन, विकट रूपधर, रुद्र प्रलयकारी ॥७॥ हर हर०

शुभ्र, सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी ।
अतिकमनीय, शान्तिकर शिव मुनि मन हारी ॥८॥ हर हर०

निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय नित्य प्रभो ।
कालरूप केवल, हर ! कालातीत विभो ॥९॥ हर हर०

सत-चित-आनँद, रसमय, करुणामय, धाता ।
प्रेम-सुधा-निधि, प्रियतम, अखिल विश्व-त्राता ॥१०॥ हर हर०

हम अति दीन, दयामय ! चरण-शरण दीजै ।
सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै ॥११॥ हर हर०