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"प्यादे से वज़ीर / अमरनाथ श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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प्यादे से वज़ीर बनते हैं ऐसी बिछी बिसात | प्यादे से वज़ीर बनते हैं ऐसी बिछी बिसात | ||
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नये भोर का भ्रम देती है निखर गयी है रात | नये भोर का भ्रम देती है निखर गयी है रात | ||
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कई एक चेहरे, चेहरों के | कई एक चेहरे, चेहरों के | ||
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त्रास औस संत्रास | त्रास औस संत्रास | ||
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भीतर तक भय से भर देते | भीतर तक भय से भर देते | ||
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हास और परिहास | हास और परिहास | ||
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नहीं बचा `साबुत' कद कोई ऐसा उपल निपात | नहीं बचा `साबुत' कद कोई ऐसा उपल निपात | ||
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बंद गली के सन्नाटों में | बंद गली के सन्नाटों में | ||
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कोई दस्तक जैसी | कोई दस्तक जैसी | ||
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भर देती हैं खालीपन से | भर देती हैं खालीपन से | ||
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बातें कैसी-कैसी | बातें कैसी-कैसी | ||
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नयी-नयी अनुगूंजें बनते नये-नये अनुपात | नयी-नयी अनुगूंजें बनते नये-नये अनुपात | ||
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लोककथायें जिनमें पीड़ा | लोककथायें जिनमें पीड़ा | ||
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का अनन्त विस्तार | का अनन्त विस्तार | ||
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हम ऐसे अभ्यस्त कि | हम ऐसे अभ्यस्त कि | ||
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खलता कोई भी निस्तार | खलता कोई भी निस्तार | ||
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बातों से बातें उठती हैं सब भूले औकात। | बातों से बातें उठती हैं सब भूले औकात। | ||
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23:50, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण
प्यादे से वज़ीर बनते हैं ऐसी बिछी बिसात
नये भोर का भ्रम देती है निखर गयी है रात
कई एक चेहरे, चेहरों के
त्रास औस संत्रास
भीतर तक भय से भर देते
हास और परिहास
नहीं बचा `साबुत' कद कोई ऐसा उपल निपात
बंद गली के सन्नाटों में
कोई दस्तक जैसी
भर देती हैं खालीपन से
बातें कैसी-कैसी
नयी-नयी अनुगूंजें बनते नये-नये अनुपात
लोककथायें जिनमें पीड़ा
का अनन्त विस्तार
हम ऐसे अभ्यस्त कि
खलता कोई भी निस्तार
बातों से बातें उठती हैं सब भूले औकात।