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"लोग खड़े हैं इंतज़ार में / अमरनाथ श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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घर घर जागे मंतर जादू 
अपनी अपनी बारी के<br>
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कोई लौटाकर आया है <br>
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वर्जित फल को चखने की
बिन पानी बिरखे हरियाए <br>
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कल्ले फूटे इच्छा के<br>
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रीढ़ से अलग देह को रखने की
रस्सी पर चलने वालों ने <br>
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लात और दुत्कार देखिए
पाए हुनर मदारी के<br><br>
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भूख जगाते रहे फ़रिश्ते<br>
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होड़ लगी है यहाँ -<br>
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आपस में मिलते हैं लेकिन
रीढ़ से अलग देह को रखने की<br>
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आँखों आँखों में पहरे 
लात और दुत्कार देखिए<br>
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भेद ले रहे एक दूसरे पर -
चर्चे गाय दुधारी के<br><br>
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अपनी ऐय्यारी के
  
ओहदेदारों की बस्ती में <br>
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मंदिर के आगे मठ ठहरे  
ऐंठ अकड़ वाले चेहरे<br>
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मठ के आगे राजभवन  
आपस में मिलते हैं लेकिन<br>
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पीछे छूट गई संझवाती  
आँखों आँखों में पहरे <br>
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उससे आगे भाव भजन  
भेद ले रहे एक दूसरे पर -<br>
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छुप छुप कर कौपीन कमंडल  
अपनी ऐय्यारी के<br><br>
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देखें रंग सफ़ारी के
 
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मठ के आगे राजभवन<br>
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छुप छुप कर कौपीन कमंडल<br>
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देखें रंग सफ़ारी के<br><br>
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23:52, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

लोग खड़े हैं इंतज़ार में
अपनी अपनी बारी के
कोई लौटाकर आया है
बिल्ले मंसबदारी के

घर घर जागे मंतर जादू
कमरू और कमच्छा के
बिन पानी बिरखे हरियाए
कल्ले फूटे इच्छा के
रस्सी पर चलने वालों ने
पाए हुनर मदारी के

भूख जगाते रहे फ़रिश्ते
वर्जित फल को चखने की
होड़ लगी है यहाँ -
रीढ़ से अलग देह को रखने की
लात और दुत्कार देखिए
चर्चे गाय दुधारी के

ओहदेदारों की बस्ती में
ऐंठ अकड़ वाले चेहरे
आपस में मिलते हैं लेकिन
आँखों आँखों में पहरे
भेद ले रहे एक दूसरे पर -
अपनी ऐय्यारी के

मंदिर के आगे मठ ठहरे
मठ के आगे राजभवन
पीछे छूट गई संझवाती
उससे आगे भाव भजन
छुप छुप कर कौपीन कमंडल
देखें रंग सफ़ारी के