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"सारी रैन जागते बीती / अमरनाथ श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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23:56, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

असगुन के उल्कापातों में
सारी रैन जागते बीती

जो दिन उजले चंदन चर्चित
उसके लिए उपस्थिति वर्जित
हुईं कोयला स्वर्ण गिन्नियाँ
कालिख हुई थैलियाँ अर्जित

तीते रहे निबौरी सपने
मधु में उम्र पागते बीती

यह बेमेल संग की छाया
चमकाती है दुख की छाया
उतना ही बाँधे रखती है
जितना ही खुलती है माया

टाट लगे उखड़े मलमल को
सारी उम्र तागते बीती

प्यासे पाषाणों का होकर
लुप्त हो गया कोई निर्झर
उसके राग हुए वैरागी
जो ऐसी धारा पर निर्भर

बंद बाँसुरी की सुरंग में
विह्वल सांस भागते बीती