भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मिट्टी-2 / अमिता प्रजापति" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमिता प्रजापति |संग्रह= }} Category:कविताएँ <Poem> जब मान...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKCatKavita}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
जब माना है
 
जब माना है

00:14, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जब माना है
ख़ुद को मिट्टी
तो सहना होगा जड़ों का उलझाव
साधना होगा पेड़ को भी
भेजना होगा जीवन का सत्व
पेड़ की शिराओं तक
सूरज का क्या है
आज चमका कल न चमका
पर तुम्हारी शिथिलता क्या उचित है
जब तुम बुलाओगी धरती बन आकाश को
वो भी दौड़ा चला आएगा बरसने को
तो जब मिट्टी हो
फिर यह ऎंठन कैसी
अपनी लोच कायम रखो
बनाए रखो अपना सौंधापन