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वापस-1 / अरुण कमल

13 bytes added, 07:19, 5 नवम्बर 2009
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जैसे रो-धो कर चुप हो हाथ-मुँह धो
अंतिम हिचकी भर
बत्ती जलाओ और शुरू करो फिर वही पाठ
वहीं जहाँ छोड़ा था कल।
 
</poem>
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