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"इन्तज़ार / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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जिसने खो दी आँखें वह भी एक बार
 
जिसने खो दी आँखें वह भी एक बार
 
 
झाड़ता है अपनी किताबें
 
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बादल गरजते हैं उसके लिए भी
 
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जो सुन नहीं सकता
 
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जो चल नहीं सकता उसके सिरहाने भी
 
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रखा है एटलस
 
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जिससे कभी किसी ने साँस नहीं बदली
 
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उसे भी इंतज़ार है शाम का ।
 
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13:32, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जिसने खो दी आँखें वह भी एक बार
झाड़ता है अपनी किताबें
बादल गरजते हैं उसके लिए भी
जो सुन नहीं सकता
जो चल नहीं सकता उसके सिरहाने भी
रखा है एटलस
जिससे कभी किसी ने साँस नहीं बदली
उसे भी इंतज़ार है शाम का ।