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"यातना / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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बदलता है आदमी को नष्ट कर देने का | बदलता है आदमी को नष्ट कर देने का | ||
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बिना बेड़ियों के | बिना बेड़ियों के | ||
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बिना गैस चैम्बर में डाले हुए | बिना गैस चैम्बर में डाले हुए | ||
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बिना इलेक्ट्रिक शाक के | बिना इलेक्ट्रिक शाक के | ||
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बर्फ़ पर सुलाए बिना | बर्फ़ पर सुलाए बिना | ||
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बहुत ही शालीन ढंग से | बहुत ही शालीन ढंग से | ||
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किसी को यातना देनी हो | किसी को यातना देनी हो | ||
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तो उसे खाने को सब कुछ दो | तो उसे खाने को सब कुछ दो | ||
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कपड़ा दो तेल दो साबुन दो | कपड़ा दो तेल दो साबुन दो | ||
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एक-एक चीज़ दो | एक-एक चीज़ दो | ||
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और काट दो दुनिया से | और काट दो दुनिया से | ||
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अकेला बन्द कर दो बहुत बड़े मकान में | अकेला बन्द कर दो बहुत बड़े मकान में | ||
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बन्द कर दो अकेला | बन्द कर दो अकेला | ||
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और धीरे-धीरे वह नष्ट हो जाएगा | और धीरे-धीरे वह नष्ट हो जाएगा | ||
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भीतर ही भीतर पानी की तेज़ धार | भीतर ही भीतर पानी की तेज़ धार | ||
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काट देगी सारी मिट्टी | काट देगी सारी मिट्टी | ||
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और एक दिन वह तट | और एक दिन वह तट | ||
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जहाँ कभी लगता था मेला | जहाँ कभी लगता था मेला | ||
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गिलहरी के बैठने-भर से | गिलहरी के बैठने-भर से | ||
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ढह जाएगा । | ढह जाएगा । | ||
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13:39, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
समय के साथ-साथ बदलता है
यातना देने का तरीका
बदलता है आदमी को नष्ट कर देने का
रस्मो-रिवाज
बिना बेड़ियों के
बिना गैस चैम्बर में डाले हुए
बिना इलेक्ट्रिक शाक के
बर्फ़ पर सुलाए बिना
बहुत ही शालीन ढंग से
किसी को यातना देनी हो
तो उसे खाने को सब कुछ दो
कपड़ा दो तेल दो साबुन दो
एक-एक चीज़ दो
और काट दो दुनिया से
अकेला बन्द कर दो बहुत बड़े मकान में
बन्द कर दो अकेला
और धीरे-धीरे वह नष्ट हो जाएगा
भीतर ही भीतर पानी की तेज़ धार
काट देगी सारी मिट्टी
और एक दिन वह तट
जहाँ कभी लगता था मेला
गिलहरी के बैठने-भर से
ढह जाएगा ।