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"प्रेमी / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

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जब हवा सबसे तेज बहती हो
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और समाज को प्रेम पर 
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उतना एतराज नहीं होता
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जितना कि घर में ही 
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एक और घर तलाशने की उनकी जिद पर
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शुरू में 
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खिड़की और दरवाजों से उनका आना-जाना
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उन्हें भी भाता है
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भला लगता है चांय-चू करते
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घर भर में घमाचौकड़ी करना
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पर जब उनके पत्थर हो चुके फर्श पर
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पुआल की नर्म सूखी डांट और पत्तियां गिरती हैं
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एतराज
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उनके कानों में फुसफुसाता है
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तेज हवा
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बारिश 
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और लू का
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और देखते हैं 
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कि कब तक ये चूजे
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लड़ते हैं मौसम से
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बावजूद इसके 
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जब बन ही जाता है घोंसला
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तब वे जुटाते हैं
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सारा साजो-सामान
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चौंकी लगाते हैं पहले
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फिर उस पर स्टूल
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कचरा प्रेम का
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और फैसला लेते हैं
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नहीं होने चाहिए
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नहीं दिखने चाहिए
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ताखे
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खिड़कियां में जाली होनी चाहिए 
  
प्रेमी<br>
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पर ऐसी मार तमाम बंदिशों के बाद भी  
गौरैये का वो जोड़ा है<br>
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कहां थमता है प्यार 
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तेज हवा<br>
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बारिश <br>
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और लू का<br>
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लड़ते हैं मौसम से<br>
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कचरा प्रेम का<br>
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और फैसला लेते हैं<br>
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ताखे<br>
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छज्जे<br>
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खिड़कियां में जाली होनी चाहिए<br><br>
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जब वे सबसे ज्यादा 
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निश्चिंत 
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और बेपरवाह होते हैं
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उसी समय 
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जाने कहां से 
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आ टपकता है एक चूजा 
  
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भविष्यपात की सारी तरकीबें  
निश्चिंत <br>
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रखी रह जाती हैं  
और बेपरवाह होते हैं<br>
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उसी समय <br>
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बाहर आ जाता है...  
जाने कहां से <br>
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आ टपकता है एक चूजा<br><br>
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रखी रह जाती हैं<br>
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और कृष्ण<br>
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बाहर आ जाता है... <br><br>
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22:59, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

प्रेमी
गौरैये का वो जोड़ा है
जो समाज के रौशनदान में
उस समय घोसला बनाना चाहते हैं
जब हवा सबसे तेज बहती हो
और समाज को प्रेम पर
उतना एतराज नहीं होता
जितना कि घर में ही
एक और घर तलाशने की उनकी जिद पर
शुरू में
खिड़की और दरवाजों से उनका आना-जाना
उन्हें भी भाता है
भला लगता है चांय-चू करते
घर भर में घमाचौकड़ी करना
पर जब उनके पत्थर हो चुके फर्श पर
पुआल की नर्म सूखी डांट और पत्तियां गिरती हैं
एतराज
उनके कानों में फुसफुसाता है
फिर वे इंतजार करते हैं
तेज हवा
बारिश
और लू का
और देखते हैं
कि कब तक ये चूजे
लड़ते हैं मौसम से
बावजूद इसके
जब बन ही जाता है घोंसला
तब वे जुटाते हैं
सारा साजो-सामान
चौंकी लगाते हैं पहले
फिर उस पर स्टूल
पहुंचने को रोशनदान तक
और साफ करते हैं
कचरा प्रेम का
और फैसला लेते हैं
कि घरों में रौशनदान
नहीं होने चाहिए
नहीं दिखने चाहिए
ताखे
छज्जे
खिड़कियां में जाली होनी चाहिए

पर ऐसी मार तमाम बंदिशों के बाद भी
कहां थमता है प्यार

जब वे सबसे ज्यादा
निश्चिंत
और बेपरवाह होते हैं
उसी समय
जाने कहां से
आ टपकता है एक चूजा

भविष्यपात की सारी तरकीबें
रखी रह जाती हैं
और कृष्ण
बाहर आ जाता है...