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"यादें और भूलना / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

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फिर बैठ गई कुर्सी पर  
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तभी दूर आकाश में
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कि जाने कहाँ से फिर
फिर कुछ सुना... <br>
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फिर याद किया किसी को... <br>
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और छाती चली गई...
पर नहीं आए आँसू<br>
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गुज़र गई रात भी<br>
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फिर बैठ गई कुर्सी पर<br>
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यूकेलिप्‍टस हिले<br>
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कि जाने कहाँ से फिर<br>
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छाने लगी धुंध<br>
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और छाती चली गई... <br>
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23:07, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

कुछ बूंदें टपका...
हल्की हो गई...
कि
कुछ हुआ ही ना हो...
फिर कुछ सुना...
फिर याद किया किसी को...
पर नहीं आए आँसू
फिर
गुज़र गई रात भी
गहरी नींद थी
स्वप्नहीन
सुबह जगी
तरोताज़ा
क़िताबें पढ़ीं.............
नहीं
अब यादें शेष नहीं
वाह - जादू हो गया आज
मुक्त हो गई वह तो...........

फिर बैठ गई कुर्सी पर
तभी दूर आकाश में
यूकेलिप्टस हिले
कि जाने कहाँ से फिर
छाने लगी धुंध
और छाती चली गई...