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"मसख़रा / अवतार एनगिल" के अवतरणों में अंतर
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एक्-दूसरे में खुलते हैं | एक्-दूसरे में खुलते हैं |
12:22, 7 नवम्बर 2009 का अवतरण
जिस अनाम इमारत के
असंख्य दरवाज़े
एक्-दूसरे में खुलते हैं
उसमें
'कुछ' तलशता मसखरा
रोने वालों पर हंसता
हंसने वालों पर रोता
कमरों की भूल-भुलईयों में भटकता।
बरसाती रातों सा
रुदन करता
झपटता,तितली पकड़ता
बुरों से बतियाता
अच्छों से लड़ता-झगड़ता
लम्बे गलियारों में
बीचों=बीच बैठ जाता है
छेदती आंखों के
कौतुक को अनदेखा कर
कैसा है यह अजीब मसखरा
अक्ल के पागल्पन पर
मुस्कुराता है
मुंह बनाता है
बतियाता
गाता है
फिर अचानक उठ
एक से दूसरे
दूसरे से तीसरे
हज़ारों, लाखों बन्द दरवाज़ों को
ख़ोलता चला आता है।