"विश्वास करना चाहता हूँ / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर
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विश्वास करना चाहता हूँ कि | विश्वास करना चाहता हूँ कि | ||
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जब प्रेम में अपनी पराजय पर | जब प्रेम में अपनी पराजय पर | ||
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कविता के निपट एकांत में विलाप करता हूँ | कविता के निपट एकांत में विलाप करता हूँ | ||
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तो किसी वृक्ष पर नए उगे किसलयों में सिहरन होती है | तो किसी वृक्ष पर नए उगे किसलयों में सिहरन होती है | ||
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बुरा लगता है किसी चिड़िया को दृश्य का फिर भी इतना हरा-भरा होना | बुरा लगता है किसी चिड़िया को दृश्य का फिर भी इतना हरा-भरा होना | ||
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किसी नक्षत्र की गति पल भर को धीमी पड़ती है अंतरिक्ष में | किसी नक्षत्र की गति पल भर को धीमी पड़ती है अंतरिक्ष में | ||
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पृथ्वी की किसी अदृश्य शिरा में बह रहा लावा थोड़ा बुझता है | पृथ्वी की किसी अदृश्य शिरा में बह रहा लावा थोड़ा बुझता है | ||
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सदियों के पार फैले पुरखे एक-दूसरे को ढाढ़स बंधाते हैं | सदियों के पार फैले पुरखे एक-दूसरे को ढाढ़स बंधाते हैं | ||
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देवताओं के आंसू असमय हुई वर्षा में झरते हैं | देवताओं के आंसू असमय हुई वर्षा में झरते हैं | ||
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मैं रोता हूँ | मैं रोता हूँ | ||
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तो पूरे ब्रह्मांड में | तो पूरे ब्रह्मांड में | ||
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झंकृत होता है दुख का एक वृंदवादन – | झंकृत होता है दुख का एक वृंदवादन – | ||
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पराजय और दुख में मुझे अकेला नहीं छोड़ देता संसार | पराजय और दुख में मुझे अकेला नहीं छोड़ देता संसार | ||
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दुख घिरता है ऐसे | दुख घिरता है ऐसे | ||
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जैसे वही अब देह हो जिसमें रहना और मरना है | जैसे वही अब देह हो जिसमें रहना और मरना है | ||
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जैसे होने का वही असली रंग है | जैसे होने का वही असली रंग है | ||
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जो अब जाकर उभरा है | जो अब जाकर उभरा है | ||
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विश्वास करना चाहता हूँ कि | विश्वास करना चाहता हूँ कि | ||
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जब मैं विषाद के लंबे-पथरीले गलियारे में डगमग | जब मैं विषाद के लंबे-पथरीले गलियारे में डगमग | ||
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कहीं जाने का रास्ता खोज रहा होता हूँ | कहीं जाने का रास्ता खोज रहा होता हूँ | ||
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तो जो रोशनी आगे दिखती है दुख की है | तो जो रोशनी आगे दिखती है दुख की है | ||
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जिस झरोखे से कोई हाथ आगे जाने की दिशा बताता है वह दुख का है | जिस झरोखे से कोई हाथ आगे जाने की दिशा बताता है वह दुख का है | ||
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और जिस घर में पहुंचकर,जिसके ओसारे में सुस्ताकर,आगे चलने की हिम्मत बंधेगी | और जिस घर में पहुंचकर,जिसके ओसारे में सुस्ताकर,आगे चलने की हिम्मत बंधेगी | ||
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वह दुख का ठिकाना है | वह दुख का ठिकाना है | ||
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विश्वास करना चाहता हूँ कि | विश्वास करना चाहता हूँ कि | ||
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जैसे खिलखिलाहट का दूसरा नाम बच्चे और फूल हैं | जैसे खिलखिलाहट का दूसरा नाम बच्चे और फूल हैं | ||
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या उम्मीद का दूसरा नाम कविता | या उम्मीद का दूसरा नाम कविता | ||
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वैसे ही प्रेम का दूसरा नाम दुख है । | वैसे ही प्रेम का दूसरा नाम दुख है । | ||
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18:16, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
विश्वास करना चाहता हूँ कि
जब प्रेम में अपनी पराजय पर
कविता के निपट एकांत में विलाप करता हूँ
तो किसी वृक्ष पर नए उगे किसलयों में सिहरन होती है
बुरा लगता है किसी चिड़िया को दृश्य का फिर भी इतना हरा-भरा होना
किसी नक्षत्र की गति पल भर को धीमी पड़ती है अंतरिक्ष में
पृथ्वी की किसी अदृश्य शिरा में बह रहा लावा थोड़ा बुझता है
सदियों के पार फैले पुरखे एक-दूसरे को ढाढ़स बंधाते हैं
देवताओं के आंसू असमय हुई वर्षा में झरते हैं
मैं रोता हूँ
तो पूरे ब्रह्मांड में
झंकृत होता है दुख का एक वृंदवादन –
पराजय और दुख में मुझे अकेला नहीं छोड़ देता संसार
दुख घिरता है ऐसे
जैसे वही अब देह हो जिसमें रहना और मरना है
जैसे होने का वही असली रंग है
जो अब जाकर उभरा है
विश्वास करना चाहता हूँ कि
जब मैं विषाद के लंबे-पथरीले गलियारे में डगमग
कहीं जाने का रास्ता खोज रहा होता हूँ
तो जो रोशनी आगे दिखती है दुख की है
जिस झरोखे से कोई हाथ आगे जाने की दिशा बताता है वह दुख का है
और जिस घर में पहुंचकर,जिसके ओसारे में सुस्ताकर,आगे चलने की हिम्मत बंधेगी
वह दुख का ठिकाना है
विश्वास करना चाहता हूँ कि
जैसे खिलखिलाहट का दूसरा नाम बच्चे और फूल हैं
या उम्मीद का दूसरा नाम कविता
वैसे ही प्रेम का दूसरा नाम दुख है ।