भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"यह विलाप नहीं है / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=दुख चिट्ठीरसा है / अशोक वाजपेयी
 
|संग्रह=दुख चिट्ठीरसा है / अशोक वाजपेयी
 
}}  
 
}}  
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
यह विलाप नहीं है
 
यह विलाप नहीं है
 
 
एक नीरव प्रार्थना है
 
एक नीरव प्रार्थना है
 
 
जो किसी देवता को संबोधित नहीं है :
 
जो किसी देवता को संबोधित नहीं है :
 
 
उसमें कोई शब्द भी नहीं है कातर या व्याकुल,
 
उसमें कोई शब्द भी नहीं है कातर या व्याकुल,
 
 
वह एक दिग्हीन चीख़ है
 
वह एक दिग्हीन चीख़ है
 
 
किसी पक्षी की जो दूरदेस से लौटने पर पाता है
 
किसी पक्षी की जो दूरदेस से लौटने पर पाता है
 
 
कि तिनका-तिनका जोड़कर बनाया उसका घोंसला
 
कि तिनका-तिनका जोड़कर बनाया उसका घोंसला
 
 
आंधी उड़ा ले गई है।
 
आंधी उड़ा ले गई है।
 
  
 
यह प्रार्थना है
 
यह प्रार्थना है
 
 
जिसमें खारे पानी के क़तरे हैं
 
जिसमें खारे पानी के क़तरे हैं
 
 
अपनी हर बूंद में बिलखते हुए
 
अपनी हर बूंद में बिलखते हुए
 
 
जिन्हें पता है कि उन्हें
 
जिन्हें पता है कि उन्हें
 
 
अब अनदेखे और अकेले ही सूख जाना है।
 
अब अनदेखे और अकेले ही सूख जाना है।
 
 
यह सारी नमी को सोखते हुए
 
यह सारी नमी को सोखते हुए
 
 
सब कुछ को ठूंठ में बदलने पर विलाप है।
 
सब कुछ को ठूंठ में बदलने पर विलाप है।
 
  
 
यह ध्वस्त मंदिर के पिछवाड़े पड़े मलबे में दबी
 
यह ध्वस्त मंदिर के पिछवाड़े पड़े मलबे में दबी
 
 
भग्न मूर्ति के ऊपर रेंगती दीमकों की क़तार का विन्यास है :
 
भग्न मूर्ति के ऊपर रेंगती दीमकों की क़तार का विन्यास है :
 
 
यह चिथड़ों की तरह
 
यह चिथड़ों की तरह
 
 
तेज़ हवा में फड़फड़ाते
 
तेज़ हवा में फड़फड़ाते
 
 
दुख के अवाक होते जाते शब्दों का बीहड़ संगीत है।
 
दुख के अवाक होते जाते शब्दों का बीहड़ संगीत है।
 
 
संसार में जहां कहीं भी आंसू झर रहा है
 
संसार में जहां कहीं भी आंसू झर रहा है
 
 
सिसकी या चीख़ है
 
सिसकी या चीख़ है
 
 
वे सभी वही इस प्रार्थना की इबारत हैं।
 
वे सभी वही इस प्रार्थना की इबारत हैं।
 
 
यह विलाप नहीं है।
 
यह विलाप नहीं है।
 +
</poem>

18:42, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

यह विलाप नहीं है
एक नीरव प्रार्थना है
जो किसी देवता को संबोधित नहीं है :
उसमें कोई शब्द भी नहीं है कातर या व्याकुल,
वह एक दिग्हीन चीख़ है
किसी पक्षी की जो दूरदेस से लौटने पर पाता है
कि तिनका-तिनका जोड़कर बनाया उसका घोंसला
आंधी उड़ा ले गई है।

यह प्रार्थना है
जिसमें खारे पानी के क़तरे हैं
अपनी हर बूंद में बिलखते हुए
जिन्हें पता है कि उन्हें
अब अनदेखे और अकेले ही सूख जाना है।
यह सारी नमी को सोखते हुए
सब कुछ को ठूंठ में बदलने पर विलाप है।

यह ध्वस्त मंदिर के पिछवाड़े पड़े मलबे में दबी
भग्न मूर्ति के ऊपर रेंगती दीमकों की क़तार का विन्यास है :
यह चिथड़ों की तरह
तेज़ हवा में फड़फड़ाते
दुख के अवाक होते जाते शब्दों का बीहड़ संगीत है।
संसार में जहां कहीं भी आंसू झर रहा है
सिसकी या चीख़ है
वे सभी वही इस प्रार्थना की इबारत हैं।
यह विलाप नहीं है।