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"साँझ : शिशुजन्म / अशोक वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

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जिसे मैंने नहीं देखा,
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-मैंने सुना <br>
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मुझे लगा
बरसात की उस धुली शाम<br>
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झरना कहीं एक हरे पेड़ के नीचे से
मैंने सोचा <br>
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बहकर चुपचाप
अशोक का भी तो फूल होता है <br>
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कहीं पास, बहुत पास मेरे आ गया है
जिसे मैंने नहीं देखा,<br>
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मैंने कहा :
प्रतीक्षा मैं कर नहीं सकता<br>
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इस धुली शाम के सड़कों पर बिखरे  
न की है<br>
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धुँधले और छोटे अनगिनत आइने हैं
फूल की—<br>
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कि एक साँझ बहुत आलोक में <br>
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देखूँ कि खिड़की के पास, <br>
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उसके सींकचे से लिपटा<br>
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खिल आया है फूल एक, साँझ का, गुलाब में :<br><br>
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झरना कहीं एक हरे पेड़ के नीचे से<br>
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बहकर चुपचाप<br>
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कहीं पास, बहुत पास मेरे आ गया है<br>
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मैंने कहा :<br>
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इस धुली शाम के सड़कों पर बिखरे <br>
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धुँधले और छोटे अनगिनत आइने हैं<br>
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धूप का टुकड़ा भी साँझ का है
 
धूप का टुकड़ा भी साँझ का है
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18:45, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

-मैंने सुना
बरसात की उस धुली शाम
मैंने सोचा
अशोक का भी तो फूल होता है
जिसे मैंने नहीं देखा,
प्रतीक्षा मैं कर नहीं सकता
न की है
फूल की—
कि एक साँझ बहुत आलोक में
देखूँ कि खिड़की के पास,
उसके सींकचे से लिपटा
खिल आया है फूल एक, साँझ का, गुलाब में :

मुझे लगा
झरना कहीं एक हरे पेड़ के नीचे से
बहकर चुपचाप
कहीं पास, बहुत पास मेरे आ गया है
मैंने कहा :
इस धुली शाम के सड़कों पर बिखरे
धुँधले और छोटे अनगिनत आइने हैं
धूप का टुकड़ा भी साँझ का है