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"क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़
 
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20:18, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं
दोस्ती तो उदास करती नहीं

हम हमेशा के सैर-चश्म सही
तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं

शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह
कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं

ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन!
इतनी आसानियों से मरती नहीं

जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़
जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं