भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कल / आग्नेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=मेरे बाद मेरा घर / आग्नेय
 
|संग्रह=मेरे बाद मेरा घर / आग्नेय
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
सीना तानकर चलता हूँ दिन-रात
 
सीना तानकर चलता हूँ दिन-रात
 
 
गजराज की तरह झूमता हूँ सड़कों पर
 
गजराज की तरह झूमता हूँ सड़कों पर
 
 
अपने मित्रों और शत्रुओं के समक्ष
 
अपने मित्रों और शत्रुओं के समक्ष
 
 
दम्भ से भरी रहती है मेरी मुखाकृति--मेरी वाणी
 
दम्भ से भरी रहती है मेरी मुखाकृति--मेरी वाणी
 
 
अलस्स सवेरे गुज़रता हूँ उस सड़क पर
 
अलस्स सवेरे गुज़रता हूँ उस सड़क पर
 
 
जिसके बाईं ओर शमशान है
 
जिसके बाईं ओर शमशान है
 
 
विनम्र हो जाता हूँ चींटी की तरह
 
विनम्र हो जाता हूँ चींटी की तरह
 
 
आज स्वयं चलकर आया हूँ यहाँ तक
 
आज स्वयं चलकर आया हूँ यहाँ तक
 
 
कल लाया जाऊंगा कन्धों पर यहाँ तक
 
कल लाया जाऊंगा कन्धों पर यहाँ तक
 +
</poem>

11:16, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

सीना तानकर चलता हूँ दिन-रात
गजराज की तरह झूमता हूँ सड़कों पर
अपने मित्रों और शत्रुओं के समक्ष
दम्भ से भरी रहती है मेरी मुखाकृति--मेरी वाणी
अलस्स सवेरे गुज़रता हूँ उस सड़क पर
जिसके बाईं ओर शमशान है
विनम्र हो जाता हूँ चींटी की तरह
आज स्वयं चलकर आया हूँ यहाँ तक
कल लाया जाऊंगा कन्धों पर यहाँ तक