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"आधी रात / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर

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'''आधी रात
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महावृक्ष की क्रोड़ में जागा हुआ पक्षी  
 
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बेचैन हो निकल आता है  
 
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खुले आसमान में
 
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बादलों की तनी चादर के ऊपर
 
बादलों की तनी चादर के ऊपर
 
 
वहाँ
 
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एक नीली नदी क्षितिज की खाई से निकलकर
 
एक नीली नदी क्षितिज की खाई से निकलकर
 
 
अचानक बह निकलती है
 
अचानक बह निकलती है
 
 
उस नदी तट पर
 
उस नदी तट पर
 
  
 
बादलों के श्वेत पुष्प जमघट की शक्ल में बतेरतीब छितरे हुए  
 
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वहाँ
 
वहाँ
 
 
अपने डैनों को उर्ध्वता में फैलाये  
 
अपने डैनों को उर्ध्वता में फैलाये  
 
 
महापक्षी  
 
महापक्षी  
 
 
आकाश के शून्य में  मंडराता है  
 
आकाश के शून्य में  मंडराता है  
 
  
 
सारे परिदृश्यों के बीच  
 
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अपनी चोंच अपने पंखों के झकोरों से शून्य को टहोके देता हुआ
 
अपनी चोंच अपने पंखों के झकोरों से शून्य को टहोके देता हुआ
 
  
 
वह दृष्टि के द्रष्टा को खोजता है
 
वह दृष्टि के द्रष्टा को खोजता है
 
 
श्रुति के श्रोता को सुनता है
 
श्रुति के श्रोता को सुनता है
 
 
मति के मन्ता का मनन करता है
 
मति के मन्ता का मनन करता है
 
 
विज्ञति के विज्ञाता को तलाशता है
 
विज्ञति के विज्ञाता को तलाशता है
 
  
 
उसे सर्वान्तर का पता-ठिकाना चाहिए
 
उसे सर्वान्तर का पता-ठिकाना चाहिए
 
 
पक्षी जो आकाशदेव के राज्य में मंडराता है
 
पक्षी जो आकाशदेव के राज्य में मंडराता है
 
 
उसे कुहासे की तनी चद्दर
 
उसे कुहासे की तनी चद्दर
 
 
बादलों के शफ्फाफ़ पुष्प  
 
बादलों के शफ्फाफ़ पुष्प  
 
 
गहरी नीली झील से पसरे आसमानी समुद्र  
 
गहरी नीली झील से पसरे आसमानी समुद्र  
 
 
धुवें के बीच बैठे बादल गण
 
धुवें के बीच बैठे बादल गण
 
 
नहीं लुभा पाते
 
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इन सबकी नहीं  
 
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उसे
 
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सिर्फ अपनी तलाश है
 
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तलाश जारी है
 
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19:36, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

महावृक्ष की क्रोड़ में जागा हुआ पक्षी
बेचैन हो निकल आता है
खुले आसमान में
बादलों की तनी चादर के ऊपर
वहाँ

एक नीली नदी क्षितिज की खाई से निकलकर
अचानक बह निकलती है
उस नदी तट पर

बादलों के श्वेत पुष्प जमघट की शक्ल में बतेरतीब छितरे हुए
वहाँ
अपने डैनों को उर्ध्वता में फैलाये
महापक्षी
आकाश के शून्य में मंडराता है

सारे परिदृश्यों के बीच
अपनी चोंच अपने पंखों के झकोरों से शून्य को टहोके देता हुआ

वह दृष्टि के द्रष्टा को खोजता है
श्रुति के श्रोता को सुनता है
मति के मन्ता का मनन करता है
विज्ञति के विज्ञाता को तलाशता है

उसे सर्वान्तर का पता-ठिकाना चाहिए
पक्षी जो आकाशदेव के राज्य में मंडराता है
उसे कुहासे की तनी चद्दर
बादलों के शफ्फाफ़ पुष्प
गहरी नीली झील से पसरे आसमानी समुद्र
धुवें के बीच बैठे बादल गण
नहीं लुभा पाते

इन सबकी नहीं
उसे
सिर्फ अपनी तलाश है

तलाश जारी है