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"उलझन / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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अलि कैसे उनको पाऊँ?
 
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:::जिसमें उनको कण कण में
 
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:::ढूँढूँ पहिचान न पाऊँ।
 
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सोते सागर की धड़कन--
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बन, लहरों की थपकी से;
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जिसमें उनको न सुनाऊँ।
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:::जिसमें उनकी छाया भी,
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:::मैं छू न सकूँ अकुलाऊँ।
  
 
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22:56, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

अलि कैसे उनको पाऊँ?
वे आँसू बनकर मेरे,
इस कारण ढुल ढुल जाते,
इन पलकों के बन्धन में,
मैं बांध बांध पछताऊँ।
मेघों में विद्युत सी छवि,
उनकी बनकर मिट जाती,
आँखों की चित्रपटी में,
जिसमें मैं आंक न पाऊँ।
वे आभा बन खो जाते,
शशि किरणों की उलझन में;
जिसमें उनको कण कण में
ढूँढूँ पहिचान न पाऊँ।
सोते सागर की धड़कन--
बन, लहरों की थपकी से;
अपनी यह करुण कहानी,
जिसमें उनको न सुनाऊँ।
वे तारक बालाओं की,
अपलक चितवन बन आते;
जिसमें उनकी छाया भी,
मैं छू न सकूँ अकुलाऊँ।