"छटपटाकर जगह बदलना / आर. चेतनक्रांति" के अवतरणों में अंतर
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और घूमकर दुर्जनता की बाँह गही | और घूमकर दुर्जनता की बाँह गही | ||
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वह कोई आम-सा दिन था | वह कोई आम-सा दिन था | ||
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खूब सारी ख़ूबियों की ख़ूब सारी गलियों में | खूब सारी ख़ूबियों की ख़ूब सारी गलियों में | ||
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आवाजाही तेज़ थी | आवाजाही तेज़ थी | ||
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मिन्दर के चबूतरे पर | मिन्दर के चबूतरे पर | ||
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एक चिन्तित आदमी | एक चिन्तित आदमी | ||
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सिर झुकाए, आँखें मूंदे | सिर झुकाए, आँखें मूंदे | ||
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भूखों को भोजन बाँट रहा था | भूखों को भोजन बाँट रहा था | ||
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वह इतना डर गया था | वह इतना डर गया था | ||
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कि भूखे के हाथ काँपते तो पत्तल मुँह पे दे मारता | कि भूखे के हाथ काँपते तो पत्तल मुँह पे दे मारता | ||
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बैठे-बैठे | बैठे-बैठे | ||
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एक लम्बा अरसा बीत गया था | एक लम्बा अरसा बीत गया था | ||
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मेरे गुस्से की नोकें एक-एक कर डूबती जा रही थीं | मेरे गुस्से की नोकें एक-एक कर डूबती जा रही थीं | ||
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असहमत होने की इच्छा पिलपिली हो गई थी | असहमत होने की इच्छा पिलपिली हो गई थी | ||
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दिल ज़रा-ज़रा-सी बात पर उछल पड़ता था | दिल ज़रा-ज़रा-सी बात पर उछल पड़ता था | ||
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और ख़ुदयकीनी पिघले गुड़ की तरह नसों में भर गई थी | और ख़ुदयकीनी पिघले गुड़ की तरह नसों में भर गई थी | ||
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चलते-चलते भीतर कुछ कौंधता था | चलते-चलते भीतर कुछ कौंधता था | ||
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और खो जाता था | और खो जाता था | ||
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वक़्त की पाबन्दी | वक़्त की पाबन्दी | ||
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बुजुर्गों का सम्मान/सफ़ेद चीज़ों का दबदबा | बुजुर्गों का सम्मान/सफ़ेद चीज़ों का दबदबा | ||
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दफ़्तर की ईमानदारी | दफ़्तर की ईमानदारी | ||
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एक अच्छे देश का नागरिक होने की ज़िम्मेदारी | एक अच्छे देश का नागरिक होने की ज़िम्मेदारी | ||
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और दोहरे-तिहरे अर्थोंवाली अर्थगर्भा कविताएँ | और दोहरे-तिहरे अर्थोंवाली अर्थगर्भा कविताएँ | ||
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पिचकारी में पानी की तरह | पिचकारी में पानी की तरह | ||
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हर जगह मेरे भीतर भर गई थीं | हर जगह मेरे भीतर भर गई थीं | ||
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कोई ज़रा-सा कहीं दबाता | कोई ज़रा-सा कहीं दबाता | ||
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तो अच्छाई अच्छों की पीक की तरह | तो अच्छाई अच्छों की पीक की तरह | ||
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या प्राणप्यारी कुंठा के फोड़े की मवाद की तरह | या प्राणप्यारी कुंठा के फोड़े की मवाद की तरह | ||
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फक् से फुदक पड़ती | फक् से फुदक पड़ती | ||
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:लोग मुझसे खुश थे | :लोग मुझसे खुश थे | ||
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:और अपना स्नेहभाजन बनाने को देखते ही टूट पड़ते | :और अपना स्नेहभाजन बनाने को देखते ही टूट पड़ते | ||
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:पालतुओं को पालने का शौक आम था | :पालतुओं को पालने का शौक आम था | ||
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:जंगलियों के लिए चिड़ि़याघर थे | :जंगलियों के लिए चिड़ि़याघर थे | ||
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:बस एक वीरप्पन था जो जंगल में बना हुआ था | :बस एक वीरप्पन था जो जंगल में बना हुआ था | ||
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तभी बस शरारतन, | तभी बस शरारतन, | ||
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और थोड़ा ऊब की प्रेरणा से | और थोड़ा ऊब की प्रेरणा से | ||
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और इसलिए भी डरकर, कि कहीं भगवान ही न हो जाऊ¡ | और इसलिए भी डरकर, कि कहीं भगवान ही न हो जाऊ¡ | ||
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मैंने | मैंने | ||
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भलमनसाहत की दमघोंटू अगरबत्तियों से | भलमनसाहत की दमघोंटू अगरबत्तियों से | ||
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गोश्त की भूरी झालरों में सजी बैठी मनुष्यता से | गोश्त की भूरी झालरों में सजी बैठी मनुष्यता से | ||
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सफ़ेद फालतू माँस से लदे अमीर बच्चे की आतंकवादी सुन्दरता से | सफ़ेद फालतू माँस से लदे अमीर बच्चे की आतंकवादी सुन्दरता से | ||
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छुटकारा पाना शुरू किया | छुटकारा पाना शुरू किया | ||
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पवित्रता के बौने दरवाज़ों की मर्यादा से निर्भय हो | पवित्रता के बौने दरवाज़ों की मर्यादा से निर्भय हो | ||
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मैं धड़धड़ाकर चला | मैं धड़धड़ाकर चला | ||
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जैसे सुन्दर कारों के बीच ट्रक जाता है | जैसे सुन्दर कारों के बीच ट्रक जाता है | ||
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और कम्युनिटी सेंटर से बाहर हो गया, जहाँ | और कम्युनिटी सेंटर से बाहर हो गया, जहाँ | ||
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::`बिगब्रांड´ कूल्हों और | ::`बिगब्रांड´ कूल्हों और | ||
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::अच्छाई के भरोसे दुर्भाग्य से लापरवाह | ::अच्छाई के भरोसे दुर्भाग्य से लापरवाह | ||
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::चेहरों की सभा थी | ::चेहरों की सभा थी | ||
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::और दरवाजे में वह मरघिल्ला चौकीदार | ::और दरवाजे में वह मरघिल्ला चौकीदार | ||
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::ईमान-की-हवा-में-तराश-दी-गई-मूर्ति-सा | ::ईमान-की-हवा-में-तराश-दी-गई-मूर्ति-सा | ||
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::अपने तबके के अहिंò बेईमानों की जामातलाशी कर रहा था | ::अपने तबके के अहिंò बेईमानों की जामातलाशी कर रहा था | ||
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::नोटिसबोर्ड पर लिखा था | ::नोटिसबोर्ड पर लिखा था | ||
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::कि देवताओं की पहरेदारी नहीं करता जो | ::कि देवताओं की पहरेदारी नहीं करता जो | ||
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::वो हर कमज़ोर चोर होता है | ::वो हर कमज़ोर चोर होता है | ||
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सड़क पर मैंने | सड़क पर मैंने | ||
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बदबूदार खुली-आम हवा में | बदबूदार खुली-आम हवा में | ||
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लम्बी साँस भरी और देखा | लम्बी साँस भरी और देखा | ||
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धर्मग्रन्थों और कानून की क़िताबों की पोशाकें पहने | धर्मग्रन्थों और कानून की क़िताबों की पोशाकें पहने | ||
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अच्छाई के पहरेदारों का जुलूस चला जाता था | अच्छाई के पहरेदारों का जुलूस चला जाता था | ||
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बीचोंबीच अच्छाई थी | बीचोंबीच अच्छाई थी | ||
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लम्बा बुर्का पहने | लम्बा बुर्का पहने | ||
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ताकत को कमज़ोर बुरे लोगों की नज़रों से बचाती | ताकत को कमज़ोर बुरे लोगों की नज़रों से बचाती | ||
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सिंहासन की ओर बढ़ी जाती | सिंहासन की ओर बढ़ी जाती | ||
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फट्-फट् फूटते गुब्बारों | फट्-फट् फूटते गुब्बारों | ||
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और पटाखों के अच्छे, अलंघ्य शोर में सुरक्षित | और पटाखों के अच्छे, अलंघ्य शोर में सुरक्षित | ||
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स्वच्छ शामियानों से गुजरती | स्वच्छ शामियानों से गुजरती | ||
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चांदनियों पर जमा-जमाकर पैर धरती | चांदनियों पर जमा-जमाकर पैर धरती | ||
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शक्ति के साथ | शक्ति के साथ | ||
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आमंत्रित करती | आमंत्रित करती | ||
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लेकिन मैं बाफ़ैसला | लेकिन मैं बाफ़ैसला | ||
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कोढ़िन कमज़ोरी के जर्जर आँचल में हटता हुआ पीछे | कोढ़िन कमज़ोरी के जर्जर आँचल में हटता हुआ पीछे | ||
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लड़ता मन में अच्छाई के ज्वार से | लड़ता मन में अच्छाई के ज्वार से | ||
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ताकत के भड़कते बुखार से | ताकत के भड़कते बुखार से | ||
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करता ही गया विदा उन्हें एक-एक कर | करता ही गया विदा उन्हें एक-एक कर | ||
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जो जाते थे | जो जाते थे | ||
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अच्छेपन की रौशन दुनिया में | अच्छेपन की रौशन दुनिया में | ||
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अच्छाई के राजदण्ड से शासन करने। | अच्छाई के राजदण्ड से शासन करने। | ||
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00:37, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मैंने जब साधुता से कहा–विदा
और घूमकर दुर्जनता की बाँह गही
वह कोई आम-सा दिन था
खूब सारी ख़ूबियों की ख़ूब सारी गलियों में
आवाजाही तेज़ थी
मिन्दर के चबूतरे पर
एक चिन्तित आदमी
सिर झुकाए, आँखें मूंदे
भूखों को भोजन बाँट रहा था
वह इतना डर गया था
कि भूखे के हाथ काँपते तो पत्तल मुँह पे दे मारता
बैठे-बैठे
एक लम्बा अरसा बीत गया था
मेरे गुस्से की नोकें एक-एक कर डूबती जा रही थीं
असहमत होने की इच्छा पिलपिली हो गई थी
दिल ज़रा-ज़रा-सी बात पर उछल पड़ता था
और ख़ुदयकीनी पिघले गुड़ की तरह नसों में भर गई थी
चलते-चलते भीतर कुछ कौंधता था
और खो जाता था
वक़्त की पाबन्दी
बुजुर्गों का सम्मान/सफ़ेद चीज़ों का दबदबा
दफ़्तर की ईमानदारी
एक अच्छे देश का नागरिक होने की ज़िम्मेदारी
और दोहरे-तिहरे अर्थोंवाली अर्थगर्भा कविताएँ
पिचकारी में पानी की तरह
हर जगह मेरे भीतर भर गई थीं
कोई ज़रा-सा कहीं दबाता
तो अच्छाई अच्छों की पीक की तरह
या प्राणप्यारी कुंठा के फोड़े की मवाद की तरह
फक् से फुदक पड़ती
लोग मुझसे खुश थे
और अपना स्नेहभाजन बनाने को देखते ही टूट पड़ते
पालतुओं को पालने का शौक आम था
जंगलियों के लिए चिड़ि़याघर थे
बस एक वीरप्पन था जो जंगल में बना हुआ था
तभी बस शरारतन,
और थोड़ा ऊब की प्रेरणा से
और इसलिए भी डरकर, कि कहीं भगवान ही न हो जाऊ¡
मैंने
भलमनसाहत की दमघोंटू अगरबत्तियों से
गोश्त की भूरी झालरों में सजी बैठी मनुष्यता से
सफ़ेद फालतू माँस से लदे अमीर बच्चे की आतंकवादी सुन्दरता से
छुटकारा पाना शुरू किया
पवित्रता के बौने दरवाज़ों की मर्यादा से निर्भय हो
मैं धड़धड़ाकर चला
जैसे सुन्दर कारों के बीच ट्रक जाता है
और कम्युनिटी सेंटर से बाहर हो गया, जहाँ
`बिगब्रांड´ कूल्हों और
अच्छाई के भरोसे दुर्भाग्य से लापरवाह
चेहरों की सभा थी
और दरवाजे में वह मरघिल्ला चौकीदार
ईमान-की-हवा-में-तराश-दी-गई-मूर्ति-सा
अपने तबके के अहिंò बेईमानों की जामातलाशी कर रहा था
नोटिसबोर्ड पर लिखा था
कि देवताओं की पहरेदारी नहीं करता जो
वो हर कमज़ोर चोर होता है
सड़क पर मैंने
बदबूदार खुली-आम हवा में
लम्बी साँस भरी और देखा
धर्मग्रन्थों और कानून की क़िताबों की पोशाकें पहने
अच्छाई के पहरेदारों का जुलूस चला जाता था
बीचोंबीच अच्छाई थी
लम्बा बुर्का पहने
ताकत को कमज़ोर बुरे लोगों की नज़रों से बचाती
सिंहासन की ओर बढ़ी जाती
फट्-फट् फूटते गुब्बारों
और पटाखों के अच्छे, अलंघ्य शोर में सुरक्षित
स्वच्छ शामियानों से गुजरती
चांदनियों पर जमा-जमाकर पैर धरती
शक्ति के साथ
आमंत्रित करती
लेकिन मैं बाफ़ैसला
कोढ़िन कमज़ोरी के जर्जर आँचल में हटता हुआ पीछे
लड़ता मन में अच्छाई के ज्वार से
ताकत के भड़कते बुखार से
करता ही गया विदा उन्हें एक-एक कर
जो जाते थे
अच्छेपन की रौशन दुनिया में
अच्छाई के राजदण्ड से शासन करने।