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"कोई तो पीके निकलेगा... / आसी ग़ाज़ीपुरी" के अवतरणों में अंतर
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कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से। | कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से। |
01:13, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से।
दरे-पीरेमुग़ाँ पर मैपरस्ती चलके बिस्तर हो॥
किसी के दरपै ‘आसी’ रात रो-रोके यह कहता था--
कि "आखि़र मैं तुम्हारा बन्दा हूँ, तुम बन्दापरवर हो"॥
००००
तुम्हीं सच-सच बता दो कौन था शिरीं की सूरत में।
कि मुश्तेख़ाक की हसरत में कोई कोहकन क्यों हो॥
टुकडे़ होकर जो मिली, कोहकनो-मजनूँ को।
कहीं मेरी ही वो फूटी हुई तक़दीर न हो॥