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"दुर्दिनों में कविता-2 / उदय प्रकाश" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह= रात में हारमोनिययम / उदय प्रकाश
 
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जीवन भर के सारे सिक्के
 
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तालाब में कूद कर मछलियाँ बन जाते हैं
 
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स्वर्ण के सारे मुहर मेंढक
 
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और ज़ेवर साँप
 
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जाल में से निकलते हैं
 
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फूते हुए काले मटके
 
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नल भटकता फिरता है नगर-नगर
 
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दमयंती चांडाल के बिस्तर पर
 
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अपनी देह के चीथड़े सीती है
 
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00:38, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जीवन भर के सारे सिक्के
तालाब में कूद कर मछलियाँ बन जाते हैं

स्वर्ण के सारे मुहर मेंढक
और ज़ेवर साँप
जाल में से निकलते हैं
फूते हुए काले मटके

नल भटकता फिरता है नगर-नगर
दमयंती चांडाल के बिस्तर पर
अपनी देह के चीथड़े सीती है