भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घरौंदा / निशा भोसले" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशा भोसले |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> लड़की बनाती है घर…)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:50, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

लड़की
बनाती है
घरौंदा रेत का
समुंदर के किनारे
बुनती है सपने
सपने सुनहरे भविष्य के

घरौंदे के साथ
चाहती है समेटना
रेत को
अपनी मुठ्ठियों में
बांधती है सपने को
घरौंदे के साथ

टूटता है बारबार
घरौंदा
अपने आकार से

लड़की सोचती है
रेत/घरौंदा और
सपनों के बारे में
टूटते है क्यूँ ये सभी
बार-बार ज़िन्दगी में।