भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पात भरी सहरी / भजन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKBhajan |रचनाकार= }} <poem>पात भरी सहरी, सकल सुत बारे-बारे, केवट की जाति…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:42, 12 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
पात भरी सहरी, सकल सुत बारे-बारे,
केवट की जाति, कछु बेद न पढ़ाइहौं ।
सबू परिवारु मेरो याहि लागि, राजा जू,
हौं दीन बित्तहीन, कैसें दूसरी गढ़ाइहौं ॥
गौतम की घरनी ज्यों तरनी तरैगी मेरी,
प्रभुसों निषादु ह्वै कै बादु ना बढ़ाइहौं ।
तुलसी के ईस राम, रावरे सों साँची कहौं,
बिना पग धोँएँ नाथ, नाव ना चढ़ाइहौं ॥