भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सो मनमोहन होत लटु / मतिराम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मतिराम }} <poem> सो मनमोहन होत लटू, मुख जाके भटू बिधु …)
(कोई अंतर नहीं)

21:05, 13 नवम्बर 2009 का अवतरण

सो मनमोहन होत लटू, मुख जाके भटू बिधु की छबि छाजै।
खेलि कै नैननि देखै जो नेक, तो स्याम सरोज पराजय साजै।।
जो बिहँसै मुख सुन्दर तो, 'मतिराम' बिहान को बारिज लाजै।
बोलै अली मृदुमंजुल बोल तौ, कोकिल बोलनि को मद भाजै।।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री सुरेश सलिल के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।