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सोय रहि रति-अन्त रसीली, अनन्द बढ़ाय अनंग-तरंगनि।
केसरि खौर करी तिय के तन, प्रीतम और सुवास के संगनि।।
जागि परि 'मतिराम' सरूप, गुमान जनावति भौंह के अंगनि।
लाल सौं बोलति नाहिंन बाल, सुयोंछति आँखि अंगोछति भंगनि।।
मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री सुरेश सलिल के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।