भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब मैं तुम्हें / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार =रघुवीर सहाय }} {{KKCatKavita‎}} <poem> जब मैं तुम्हारी दया अंग…)
(कोई अंतर नहीं)

02:06, 14 नवम्बर 2009 का अवतरण

जब मैं तुम्हारी दया अंगीकार करता हूँ
किस तरह मन इतना अकेला हो जाता है?

सारे संसार की मेरी वह चेतना
निश्चय ही तुम में लीन हो जाती होगी।

तुम उस का क्या करती हो मेरी लाडली--
--अ‍पनी व्यथा के संकोच से मुक्त होकर
जब मैं तुम्हे प्यार करता हूँ।