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"मेरी नींदः रेत की मछली / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
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+ | जैसे फूले कमल ताल की लहरे लील गईं | ||
− | + | आग लगी है घर की मीठी गंगा लहरी में।। | |
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− | + | कालीख झरती धूप यहाँ की हवा विषैली है | |
− | + | सबसे ज़्यादा धोबी की ही चादर मैली है | |
− | + | दिखलाई देते हैं तारे भरी दुपहरी में।। | |
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− | + | मुखिया खाते दूध भात हम धोखा खाते हैं | |
+ | वहीं पंच परमेश्वर हैं जो घर अलगाते हैं | ||
− | + | जितनी सड़कें नयीं बनीं सब गईं कचहरी में। | |
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15:02, 10 दिसम्बर 2006 का अवतरण
मेरी नींद रेत की मछली हुई मसहरी में।
धान पान थे खेत हमारे नहरें लील गई
जैसे फूले कमल ताल की लहरे लील गईं
आग लगी है घर की मीठी गंगा लहरी में।।
कालीख झरती धूप यहाँ की हवा विषैली है
सबसे ज़्यादा धोबी की ही चादर मैली है
दिखलाई देते हैं तारे भरी दुपहरी में।।
मुखिया खाते दूध भात हम धोखा खाते हैं
वहीं पंच परमेश्वर हैं जो घर अलगाते हैं
जितनी सड़कें नयीं बनीं सब गईं कचहरी में।