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"अचानक / दुष्यन्त" के अवतरणों में अंतर

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03:00, 16 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

बैठे हों जब
किसी लॊन में
हरी दूब पर
अनायास ही चली जाती है हथेली
सर पर

तो अंगुलियां पगडंडी बनाकर
घुस जाती है बालों में
किंतु अहसास नहीं होता
उस गर्माहट का
न ही वह नरम लहजा

और में डूब जाता हूं गहरा
तुम्हारी यादों के समुद्र में।

 
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा