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03:06, 16 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

 
आपके दर्शन
आपसे ज्यादा सार्थक शायद !

आपकी अनुभूति,
अपने आस-पास,
आपके होने से ज्यादा अर्थवान है।

आपके होने से
केवल अनुभूति में
उग जाता है मेरा सूरज !

आपके होने से
दूर अनुभूति से
छिप जाता है
मेरा सूरज !


मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा