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03:15, 16 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

एक वक़्त था
जब वक़्त की बिसात पर
एक तरफ़ तुम थे
एक तरफ़ हम
और बीच में थे मोहरे

एक वक़्त आज है
जब वक़्त की बिसात पर
तुम भी एक मोहरे हो
और मैं भी।

 
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा