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एक वक़्त था
जब वक़्त की बिसात पर
एक तरफ़ तुम थे
एक तरफ़ हम
और बीच में थे मोहरे
एक वक़्त आज है
जब वक़्त की बिसात पर
तुम भी एक मोहरे हो
और मैं भी।
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा