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"समुद्र-1 / पंकज परिमल" के अवतरणों में अंतर

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04:36, 17 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

सबसे ज्यादा मुश्किल
समुद्र के सामने थी
उसके पास तो सभी आते थे
पर उसे कहीं जाना नहीं था
उसके पास सबसे ज्यादा रत्न थे
और उसकी छाती पर
सबसे ज्यादा डाकुओं के जहाज
सूरज उसे सोखता था
तो मौज आती थी
पोखरों, तालाबों और नदियों की
नदियां तो उसका हिस्सा
ईमानदारी से ले आती थीं
पर छोटे-छोटे तालाब
पानी मारकर सांस भी नहीं लेते थे
वह ज्वार बन कर कभी-कभी
गरज तो जाता था
पर अगले ही क्षण
उसे भाटा बनकर माफी मांगनी पड़ती थी
समुद्र जितना बड़ा था
उतना ही ज्यादा उस पर बंदिशें थीं
नदियां तो घूम-फिर कर हल्की हो लेती थीं
एक ही जगह पड़े-पड़े
समुद्र के तो घुटने भी दर्द करने लगे