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"एक बुरा सपना / मदन गोपाल लढा" के अवतरणों में अंतर

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13:47, 17 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

वह लपर-लपर करके
बूक से
गर्म रक्त पी रही है
अन्धेर घुप्प में
बिजली की तरह
चमकती है उसकी आँखें

मौन में सरणाट बजती है
उसकी साँस
मैं अकेला
डर से काँपता
कभी उसे देखता हूँ
कभी हाथ में
इकट्ठा की हुई कविताओं को।


मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा