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02:19, 19 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

कभी कुछ बनता है
कभी छितर जाती है
स्याही पूरे पन्ने पर
कभी शब्द एक बेसहारा
झूलता हवा में
कभी टेढ़ी लाईन अधखिंची-सी
घिसटती जाती है दूर तक
ऐसे गुज़रता है
एक-एक दिन...।