भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"परछाईं / देवेन्द्र रिणवा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= देवेन्द्र रिणवा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> अन्धेरे स…)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:25, 21 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

अन्धेरे से बनी होती है
इसकी देह
जितना तेज़ प्रकाश
उतनी गहरी परछाईं
 
इतनी डरपोक और शातिर
कि आँख नहीं मिलाती
ठीक पीछे खड़ी होती है
 
दुबक जाती है पाँव तले
जब आ खड़ा होता है
प्रकाश माथे पर
 
कमज़ोर और लम्बवत्
जब हो जाता है प्रकाश
यह लम्बी हो जाती है
सुरसा की तरह