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"किसकी तसल्ली पर अब रोकूँ अश्कों के सैलाब मिरे / संकल्प शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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04:39, 23 नवम्बर 2009 का अवतरण
किसकी तसल्ली पर मैं रोकूँ अश्कों के सैलाब मेरे,
देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब<ref>दोस्त</ref> मेरे।
जब से गए हो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में,
और महकना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब मेरे।
उम्मीद के दामन से लिपटे हम कब तक तेरी राह तकें,
या तो दीद<ref>देखने को</ref> की सूरत दे या बिखरा दे सब ख्वाब मेरे।
पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के,
ज़रा संभालना रुला न डालें तुझको कहीं जवाब मेरे।
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शब्दार्थ
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