"कभी-कभी यूँ ही मुस्काना / ऋतु पल्लवी" के अवतरणों में अंतर
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कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | ||
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पावस के पीले पत्तों को स्वर्ण रंग दे | पावस के पीले पत्तों को स्वर्ण रंग दे | ||
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हार बना निज स्वप्न वर्ण दे | हार बना निज स्वप्न वर्ण दे | ||
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वासंती सा मोह जगाना,मन को भाता है. | वासंती सा मोह जगाना,मन को भाता है. | ||
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कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है . | कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है . | ||
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व्यर्थ जूही-दल,मिथ्य वृन्द-कमल | व्यर्थ जूही-दल,मिथ्य वृन्द-कमल | ||
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केवल भरमाने को प्रस्तुत रंग-परिमल | केवल भरमाने को प्रस्तुत रंग-परिमल | ||
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इससे तो सुदूर विपिन में गिरे पलाश का मान बढ़ाना,मन को भाता है. | इससे तो सुदूर विपिन में गिरे पलाश का मान बढ़ाना,मन को भाता है. | ||
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कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | ||
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गर्मी के आतप से जलती जेठ-दुपहर में | गर्मी के आतप से जलती जेठ-दुपहर में | ||
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एक-एक कर तिनका चुनते,नन्हें से पंछी के संग में | एक-एक कर तिनका चुनते,नन्हें से पंछी के संग में | ||
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छोटा सा एक नीड़ बनाना,मन को भाता है . | छोटा सा एक नीड़ बनाना,मन को भाता है . | ||
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कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | ||
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हैं असीम आशाएं सबकी,सतरंगी सुख-स्वप्न सभी के | हैं असीम आशाएं सबकी,सतरंगी सुख-स्वप्न सभी के | ||
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मनुज चाहता स्वार्थ सिद्धि हित,सारे मुक्तक भाग्य निधि के | मनुज चाहता स्वार्थ सिद्धि हित,सारे मुक्तक भाग्य निधि के | ||
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इससे तो निस्पृह बच्चे की निश्छल इच्छा बन जाना,मन को भाता है . | इससे तो निस्पृह बच्चे की निश्छल इच्छा बन जाना,मन को भाता है . | ||
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कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | ||
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जुड़े कई निश्चित से बंधन इस जीवन में | जुड़े कई निश्चित से बंधन इस जीवन में | ||
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कई हैं अपने रिश्ता-नाते ,जग प्रांगण में | कई हैं अपने रिश्ता-नाते ,जग प्रांगण में | ||
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किन्तु किसी अंजान पथिक को अपना कहकर स्वयं मिट जाना,मन को भाता है. | किन्तु किसी अंजान पथिक को अपना कहकर स्वयं मिट जाना,मन को भाता है. | ||
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कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है. | ||
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19:34, 24 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है.
पावस के पीले पत्तों को स्वर्ण रंग दे
हार बना निज स्वप्न वर्ण दे
वासंती सा मोह जगाना,मन को भाता है.
कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है .
व्यर्थ जूही-दल,मिथ्य वृन्द-कमल
केवल भरमाने को प्रस्तुत रंग-परिमल
इससे तो सुदूर विपिन में गिरे पलाश का मान बढ़ाना,मन को भाता है.
कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है.
गर्मी के आतप से जलती जेठ-दुपहर में
एक-एक कर तिनका चुनते,नन्हें से पंछी के संग में
छोटा सा एक नीड़ बनाना,मन को भाता है .
कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है.
हैं असीम आशाएं सबकी,सतरंगी सुख-स्वप्न सभी के
मनुज चाहता स्वार्थ सिद्धि हित,सारे मुक्तक भाग्य निधि के
इससे तो निस्पृह बच्चे की निश्छल इच्छा बन जाना,मन को भाता है .
कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है.
जुड़े कई निश्चित से बंधन इस जीवन में
कई हैं अपने रिश्ता-नाते ,जग प्रांगण में
किन्तु किसी अंजान पथिक को अपना कहकर स्वयं मिट जाना,मन को भाता है.
कभी-कभी यूँ ही मुस्काना मन को भाता है.