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− | घोड़ा ही बैठ गया पसरकर | + | अचानक सब कुछ हिलता हुआ थम गया है |
− | अब कहीं जाने से क्या लाभ ? | + | भव्य अश्वमेघ के संस्कार में |
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− | तुम धरती स्वीकार करते हो | + | तुम धरती स्वीकार करते हो |
− | विजित करते हो जनपद पर जनपद | + | विजित करते हो जनपद पर जनपद |
− | लेकिन अज्ञान,निर्धनता और बीमारी के ही तो राजा हो | + | लेकिन अज्ञान,निर्धनता और बीमारी के ही तो राजा हो |
− | लौट रही हैं सुहागिन स्त्रियाँ | + | लौट रही हैं सुहागिन स्त्रियाँ |
− | गीत नहीं कोई किस्सा मज़ाक सुना रही हैं- | + | गीत नहीं कोई किस्सा मज़ाक सुना रही हैं- |
− | राजा थक गए हैं | + | राजा थक गए हैं |
− | उनका घोड़ा बूढा दार्शनिक हो चला अब | + | उनका घोड़ा बूढा दार्शनिक हो चला अब |
− | उन्हें सिर्फ़ राजधानी के परकोटे में ही | + | उन्हें सिर्फ़ राजधानी के परकोटे में ही |
− | अपना चाबुक फटकारते हुए घूमना चाहिए | + | अपना चाबुक फटकारते हुए घूमना चाहिए |
− | राजधानी में सब कुछ उपलब्ध है | + | राजधानी में सब कुछ उपलब्ध है |
− | बुढापे में सुंदरियाँ | + | बुढापे में सुंदरियाँ |
− | होटलों की अंतर्महाद्वीपीय परोसदारियाँ | + | होटलों की अंतर्महाद्वीपीय परोसदारियाँ |
− | राजधानी में खानसामे तक सुनाते हैं | + | राजधानी में खानसामे तक सुनाते हैं |
रसोई में महायुद्धों की चटपटी | रसोई में महायुद्धों की चटपटी | ||
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19:58, 24 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अचानक सब कुछ हिलता हुआ थम गया है
भव्य अश्वमेघ के संस्कार में
घोड़ा ही बैठ गया पसरकर
अब कहीं जाने से क्या लाभ ?
तुम धरती स्वीकार करते हो
विजित करते हो जनपद पर जनपद
लेकिन अज्ञान,निर्धनता और बीमारी के ही तो राजा हो
लौट रही हैं सुहागिन स्त्रियाँ
गीत नहीं कोई किस्सा मज़ाक सुना रही हैं-
राजा थक गए हैं
उनका घोड़ा बूढा दार्शनिक हो चला अब
उन्हें सिर्फ़ राजधानी के परकोटे में ही
अपना चाबुक फटकारते हुए घूमना चाहिए
राजधानी में सब कुछ उपलब्ध है
बुढापे में सुंदरियाँ
होटलों की अंतर्महाद्वीपीय परोसदारियाँ
राजधानी में खानसामे तक सुनाते हैं
रसोई में महायुद्धों की चटपटी