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"दर्शन / ऋतुराज" के अवतरणों में अंतर

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आदमी के बनाए हुए दर्शन में  
 
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दिपदिपाते हैं सर्वशक्तिमान  
 
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उनकी साँवली बड़ी आँखों में  
 
उनकी साँवली बड़ी आँखों में  
 
 
कुछ प्रेम, कुछ उदारता, कुछ गर्वीलापन है  
 
कुछ प्रेम, कुछ उदारता, कुछ गर्वीलापन है  
 
 
  
 
भव्य वह भी कम नही है  
 
भव्य वह भी कम नही है  
 
 
जो इंजीनियर है  
 
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इस विराट वास्तुशिल्प का  
 
इस विराट वास्तुशिल्प का  
 
 
  
 
दलित की दृष्टि में कौतुक है  
 
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दोनों पक्षों कि लिए  
 
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यानी प्रभु की सत्ता और  
 
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बुर्जुआ के उदात्त के लिए  
 
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एक अवाक् जिज्ञासा है कि  
 
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ऐसा कैसे हुआ
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19:59, 24 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

आदमी के बनाए हुए दर्शन में
दिपदिपाते हैं सर्वशक्तिमान
उनकी साँवली बड़ी आँखों में
कुछ प्रेम, कुछ उदारता, कुछ गर्वीलापन है

भव्य वह भी कम नही है
जो इंजीनियर है
इस विराट वास्तुशिल्प का

दलित की दृष्टि में कौतुक है
दोनों पक्षों कि लिए
यानी प्रभु की सत्ता और
बुर्जुआ के उदात्त के लिए
एक अवाक् जिज्ञासा है कि
ऐसा कैसे हुआ
ऐसा कैसे हुआ ! ! !