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"जड़ें / केदारनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

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01:32, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण

जड़ें चमक रही हैं
ढेले ख़ुश
घास को पता है
चींटियों के प्रजनन का समय
क़रीब आ रहा है

दिन भर की तपिश के बाद
ताज़ा पिसा हुआ गरम-गरम आटा
एक बूढ़े आदमी के कन्धे पर बैठकर
लौट रहा है घर
मटमैलापन अब भी
जूझ रहा है
कि पृथ्वी के विनाश की ख़बरों के ख़िलाफ़
अपने होने की सारी ताक़त के साथ
सटा रहे पृथ्वी से।