भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बजरंग बाण / तुलसीदास" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
{{KKRachna}}
+
{{KKRachna  
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
|रचनाकार=तुलसीदास
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}

18:08, 6 दिसम्बर 2009 का अवतरण

{{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास



== बजरंग बाण ==

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करें सनमान ।
तेहिं के कारज शकल शुभ,सि़द्व करें हनुमान ।।

जय हनुमंत संत हितकारी, सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।
जन के काज विलंब न कीजै, आतुर दौरि महा सुख दीजै ।
जैसे कूदि सिंधु महि पारा,सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।
आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहुं लात गई सुरलाका ।
जाय विभीषण को सुख दीन्हा,सीता निरखि परम पद लीन्हा ।