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एक तुम हो / माखनलाल चतुर्वेदी

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::तुझे सौगंध है घनश्याम की आ,
::तुझे सौगंध है भारत-धाम की आ,
::तुझे सौगंध सेवा-ग्राम की आ,
::कि आ, आकर उजड़तों को बचा, आ ।
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