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"एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए / ख़ुमार बाराबंकवी" के अवतरणों में अंतर
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तौहीन-ए-मयकशी<ref>शराब का निरादर</ref> का मज़ा हमसे पूछिये | तौहीन-ए-मयकशी<ref>शराब का निरादर</ref> का मज़ा हमसे पूछिये | ||
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19:27, 12 दिसम्बर 2009 का अवतरण
एक पल में एक सदी का मज़ा हमसे पूछिए
दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हमसे पूछिए
भूले हैं रफ़्ता-रफ़्ता<ref>धीरे-धीरे </ref> उन्हें मुद्दतों में हम
किश्तों में ख़ुदकुशी<ref>आत्म-हत्या </ref> का मज़ा हमसे पूछिए
आगाज़े-आशिक़ी<ref>प्रेम-आरम्भ </ref> का मज़ा आप जानिए
अंजामे-आशिक़ी<ref>प्रेम का अंत </ref> का मज़ा हमसे पूछिए
जलते दीयों में जलते घरों जैसी लौ कहाँ
सरकार रोशनी का मज़ा हमसे पूछिए
वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुख़बिरी का मज़ा हमसे पूछिए
हँसने का शौक़ हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मज़ा हमसे पूछिए
हम तौबा करके मर गए क़ब्ले-अज़ल<ref> मौत से पहले</ref> "ख़ुमार"
तौहीन-ए-मयकशी<ref>शराब का निरादर</ref> का मज़ा हमसे पूछिये
शब्दार्थ
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